शनिवार, 5 मार्च 2016

मशीनी अनुवाद और उसकी समस्याएं


म्प्यूटर सॉफ्टवेयर की सहायता से किसी भाषा (कम्प्यूटर भाषा नहीं) के पाठ या वाक् को अनुवाद करने को मशीनी अनुवाद कहते है। मशीनी अनुवाद में मानव का उपयोग एक सहायक के रूप में किया जाता है तथा अधिकांश कार्य कम्प्यूटर प्रोग्राम द्वारा संचालित किया जाता हैं इसे एक विशिष्ट कम्प्यूटर प्रोग्राम से संचालित किया जाता है। वैसे मशीनी अनुवाद को अभिव्यक्ति का मशीनीकरण भी कहा जा सकता है। मशीनी अनुवाद को मशीन की सहभागिता के आधार पर चार भागों में बांटा जा सकता है;
   (1)   शब्दकोश आधारित मशीनी अनुवाद
   (2)   नियम अथवा स्थानांतरण आधारित मशीनी अनुवाद
   (3)   उदाहरण आधारित मशीनी अनुवाद
   (4)   सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद
यांत्रिक अनुवाद की सामान्य प्रक्रिया में स्रोत भाषा के पाठ को कम्प्यूटर आधारित सॉफ्टवेयर में इनपुट के रूप में दाखिल या लोड किया जाता है। जिसके बाद मशीन यानी सॉफ्टवेयर की अपनी स्मृति (TM- Translation memory) की सहायता से वाक्य दर वाक्य अनुवाद किया जाता है।
आजकल उपलब्ध सॉफ्टवेयरों में SDL-TRADOS, Wordfast, memo-Q, TO3000, Atril Dejavu, Across, Fluency, Word finder आदि प्रमुख हैं साथ ही गूगल का अपना ट्रांसेलटर टूलकिट भी उपलब्ध हैं टूल्स के नाम से लोकप्रिय इन सभी अनुवाद मशीनों में एक अनुवाद समृति होती हैं जिसके आधार पर यह Tool शब्द या वाक्य के लिए अनुवाद का प्रस्ताव करता हैं जिसमें संदर्भनुसार परिवर्तन करके या प्रस्ताव के सटीक होने पर उसे स्वकार किया जाता है। हम जैसे-जैसे इस पर अनुवाद करते जाते है यह अपनी TM को बढ़ाता जाता है और इस प्रकार से ये काम करता है। 



इतिहास:-
17वी सदी के आरंभ में रेने दैस्कतैर्स व लैब्निन नाम के दर्शन शास्त्रियों ने भिन्न भाषिक संरचनाओं की भिन्न माषिक अभिव्यक्ति को एक ही भाषिक प्रतीक द्वारा प्रस्तुत करने के लिए संख्यात्मक अभियांत्रिकी दृष्टि से एक सार्वमौलिक भाषा का प्रस्ताव रखा था। 1933 में जार्ज आर्ट नाम के फ्रेंच विद्वान ने पेपर टेप के माध्यम से मिकेनिकल ब्रेल नाम अनुवाद यंत्र के लिए एक स्वचालित द्विभाषी कोष बनाया था। ट्रोयास्की और स्मिर्नोव नामेक रूसी विद्वानों ने 1944 में मास्की में अनुवाद यंत्र का प्रस्ताव दिया था। 1939 में पहली बार बेल लैब द्वारा न्यूयार्क विश्वमेले में पहले इलेक्ट्रॉनिक वाक् संश्लेषक यंत्र का प्रदर्शन हुआ। पहली प्रोग्रमिंग भाषा कोमिट का 1912 में MIT द्वारा किया गया। 1954 में IBM ने सिस्ट्रॉन नामक मशीती प्रणाली प्रस्तुत की। 1868 में पेटर टोया ने पहली मशीनी अनुवाद कंपनी लाटसेक (LATSEC) की शुरूआत की। 1969 में चालर्स कीर्न और बर्नार्ड स्कॉट ने मशीनी अनुवाद प्रणाली लोगोस (LOGOS) का विकास किया। 1980 के दशक में जापान में पिवोट (PIVOT) तंत्र का विकास हुआ। 1989 में यूरोपीय आयोग द्वारा यूरो (EUROTRA) नामक मशीनी अनुवाद परियोजना की स्थापना हुई, जिसे यूरोपीय समुदाय की नौ आधिकारिक भाषाओं के लिए बनाया गया था। तब से लेकर अब तक मशीनों द्वारा अनुवाद के लिए अनेक प्रयास किए जाते रहे है। आजकल गूगल ट्रांसलेट सर्वाधिक भाषाओं के युग्म में सहायता उपलब्ध कराता है।
भारत में मशीनी अनुवाद की शुरूआत 1983 से मानी जाती है। जब तमिल विवि में रूसी-तमिल TUMTS अनुवाद यंत्र की शुरूआत हुई। यह सीमित क्षमता वाला यंत्र था आज सी-डैक नोएडा, ‘‘आन्ग्लभारती मॉट’’ हैदराबाद अनुसार सी डैक पुणें - मंत्र व आईआईटी मुंबई मात्रा व इन्फोसेट अनुवादक पर कार्यरत हैं।


मशीनी अनुवाद के लाभ:-
मशीनी अनुवाद को लगातार सुधारा जा रहा है। ये टूल्स लगातार बेहतर होते जा रहें है। गूगल जैसे ऑनलाइन टूल पर 9 (उर्दू सहित)  भारतीय भाषाएं उपलब्ध हैं ऊपर बताए गए टूल्स के अलावा भारतीय टूल्स भी उपलब्ध है जो मूलतः सरकारी संस्थानों द्वारा विकसित किए गए हैं। इन सभी टूल्स (मशीनों) से अनुवाद प्रक्रिया में कई तरह के लाभ मिले है।
  •  इससे अनुवाद प्रक्रिया में लगने वाले समय में काफी बचत हो सकती है।
  • यदि कुछ ऑन लाइन टूल्स को हटा दें तो अधिकोश ऑफलाइन कार्य करते हैं जिनको दिन के किसी भी समय उपयोग किया जा सकता है।
  • इनके लाइसेंस या उच्चीकरण के व्यय के अतिरिक्त इनमें कोई अन्य खर्च नहीं आता है।
  • इनमें से ऑफलाइन टूल्स मे निजता पूरी तरह से सुरक्षित रहती है।
  • हर एक प्रोग्राम कई भाषाओं (आपकी इच्छानुसार) के युग्मों के लिए काम करता है।
  •  इनसे अनुवाद करके सुधार करवाना एक सस्ता विकल्प है।
  • भाषा को कतई न जानने वाले के लिए यह एक खिड़की खोलने जैसा है क्योंकि यह कम से कम एक भाव तो स्पष्ट कर ही देता है।
  • मशीनी अनुवाद हमें हमारी अनुवाद शैली को एक जैसा बनाए रखने में मदद करता है।
  •  ये टूल्स अब इतने विकसित हो गए है कि इनको इस प्रकार से संयोजित किया जा सकता है। कि ये मशीन से पकड़ी जा सकने वाली त्रुटियों के होने पर सूचित कर दे।  इन टूल्स का लाभ यह भी है कि ये अधिकांश फाइल फार्मेट्स का समर्थन करते है तथा अनुवाद के पश्चात तैयार (Exported) फाइल यानी आउटपुट को ठीक वैसा ही प्रस्तुत करते है जैसा फार्मेट इनपुट का था।
  • Trados 2015 जैसे कुछ Tool अब .pdf फाइलों को भी पढ़कर उनको संपादित करने या अनुवाद करने योगय स्थिति में ला देते है।

मशीनी अनुवाद की समस्याएं:-
मशीनी अनुवाद के माध्यम से अनुवादकों को काफी सुविधाएं हासिल हुई और इस व्यवसाय में पेशवर अनुवादक इन टूल्स का काफी उपयोग भी कर रहे हैं, इसने अनुवाद की प्रक्रिया और पेशे को काफी लाभ पहुचाया है। लेकिन इन टूल्स के माध्यम से अनुवाद करते समय कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  •  मशीन अनुवाद मानवीय मेघा और तर्क शक्ति के सामने नहीं ठहर सकता। किसी भाषा के एक शब्द के भिन्न-भिन्न संदर्भो में भिन्न-भिन्न वाक्यों में अर्थ भिन्न-भिन्न होते है। ऐसे में मावना विहीन मशीन यह तय नहीं कर सकती कि सही अनुवाद क्या होगा।
  •  किसी भी तरह से मशीनी अनुवाद का अर्थ स्वचालित अनुवाद नहीं है। इसके लिए मशीन को चलाने के लिए मानव की उपस्थिति नियंत्रक रूप में आवश्वक है।
  • सभी मशीनों की अनुवाद स्मृति धीरे-धीरे विकसित होती जाती है। (उनके उपयोग के साथ) ऐसी स्थिति में मशीन वास्तव आपको अनुवादों के सुझाव देती है, सटीक अनुवाद नहीं ।
  • व्याकरण के स्तर पर दो भाषाएं सर्वथा भिन्न हो सकती है। अंग्रेजी-हिन्दी को ही ले लीजिए-
-    How far had you gone?
-    तुम कितनी दूर तक गए थे?
-    तुम कहां तक गए थे?
-    तुम कितनी दूर तक चले गए थे?
-    कितनी दूर तुम चले गए थे?  आदि
  • इस तरह से थोड़े-थोड़े अंतरों के कई सारे (विकल्प हो सकते है।) उनमें से पूरे स्रोत के आधार पर सही पाठ को तो मानव ही चुन सकता है, जिसे व्याकरण का ज्ञान होगा (जिसे दोनो भाषाओं का वही इसमें से सही अनुवाद चुन सकता है)। एक और उदाहरण देखिए -
  • Old जो कि एक विशेषण है। इसके कुछ उपयोग old man, Old friend, 3 year’s old हो सकते हैं। मशीन के अनुवाद के विकल्प क्रमशः पुराना आदमी, पुराना मित्र, 3 वर्ष पुराना, बूढ़ा आदमी, 3 वर्षीय देगी। अब यह मानव तय करेगा कि किसके लिए क्या उपयुक्त है।
  • मशीनी अनुवाद को लेकर लोगों के मन में धारणा है कि मशीन के अनुवाद में वही प्रक्रिया शामिल होती है जो कि मानव द्वारा अनुवाद में प्रयोग की जाती है। लेकिन मशीन यानी अनुवाद टूल की अनुवाद स्मृति अपने भीतर पहले से उपलब्ध (यदि हो तों) अभाव होता है।
  • भाषाओं का विजातीय होना की मशीनी अनुवाद की एक मुख्य समस्या है। प्रत्येक भाषा अपनी निजी प्रकृति की धारक होती है। जिसके अनुसार उसकी संरचना होती है। उदाहरण के हिन्दी व अंग्रेजी दोनो ही विजातीय भाषाएं है और इसी कारण दोनों की संरचनाएं भिन्न है। संरचना की इस भिन्नता के कारण ही मशीनी अनुवाद में समस्या पैदा होती है।
  • सार्वमौमिक व्याकरण का अभाव होना भी मशीनी अनुवाद की एक समस्या है। चॉमस्की ने अनेक सार्वभौमिक व्याकरणों का निर्माण किया लेकिन आज भी मशीनी अनुवाद के लिए आवश्यक सार्वभौमिक व्याकरण अर्थात सारी भाषाओं पर आधारित नियमों से संबद्ध एक समान व्याकरण उपलब्ध नहीं हो पाया है। यही वह कारण है कि जिसके चलते मशीनी अनुवाद में समस्याएं आती है।
  • एक ही शब्द के कई पर्यायवाची होते है इसी कारण अनुवाद स्मृति में स्रोत भाषा के किसी एक शब्द के लिए लक्ष्य भाषा में अनेक शब्दों के होने के कारण मशीनों के लिए सही व सटीक शदर व चुनाव कर पाना समस्याप्रद हो जाता है। इसका सटीक उदाहरण गूगल ट्रांसलेट है जिस पर यदि एक साधारण सा वाक्य रखा जाए-
  -    How are you?
         तो निम्नलिखित विकल्प मिलते हैं -
         -     तुम कैसे हो?
         -     आप कैसे है?
         -     तुम कैसी हो?
         -     आप कैसी हैं?
         -     कैसे हैं?
         -     कैसे हो?
ऐसे में अंतिम चुनाव तो मानव ही करेगा।
  • मशीनी अनुवाद के विकास के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि भाषा संबंधी नियमों का निर्माण होता रहे। इसके लिए भाषा वैज्ञानिकों की आवश्यकता होती है। मशीनी अनुवाद के क्षेत्र में विकास करने वाले अभी भी अधिकांशतः कम्प्यूटर वैज्ञानिक है और भाषा वैज्ञानिकों का नितांत अभाव रहा हैं इसी कारण इन मशीनों टूल्स का पूरी तरह व्यवहारिक हो पाने की प्रक्रिया धीमी है।
  • जैसा कि ऊपर बताया (लाभ खंड मे) कि इससे (मशीनी अनुवाद से) समय की बचत होती है। लेकिन कम्प्यूटर की मैमोरी सीमित होने के कारण एकत्रित होने वाले आंकड़ें के भार के चलते यह धीमा होता जाता है और अनुवाद की गति प्रभावित होती है। वही पद गूगल ट्रांसलेट जैसे साधन के उपयोग के लिए ऑनलाइन होता आवश्यक है। क्योंकि उनका सारा संग्रह उनके सर्वरों पर रहता है।
  • सारे विश्व में हर एक क्षेत्र में मशीनों में विकास हेतु निरंतर शोध चल रहा है। ठीक उसी तरह से अनुवाद के लिए मशीनों पर भी निरंतर शोध व विकास जारी है। इस संबंध में नए-नए सॉफ्टवेयर सामने आ रहे है। पुराने लगातार उच्चीकृत व बेहतर किए जा रहे है। समस्या, लक्ष्य भाष की प्रकृति को समतना भी है भाषा से संबधित समस्त अनुप्रयोग(Functions) को एक ही स्मृति (Memory) में रखा पाना भी एक कठिन कार्य है। यह विकास इनके संग्रहण की क्षमता को भी बढ़ा रहा है।
  • कृत्रिम मेघा के विकास द्वारा मशीन को भी मानव की मेधा की तरह कृत्रिम मेघा प्रदान करने का प्रयास जारी है। इस पर भाषा तथा कम्प्यूटर वैज्ञानिक संयुक्त रूप से प्रयासरत है। इसमें होने वाला विलंब भी एक बड़ी समस्या है।
  • मानव अनुवाद करते समय सम्पूर्ण वाक्य पर या पाठ पर ध्यान रखा जाता है न कि छोटी भाषाई इकाई पर। कृत्रिम अनुवाद मशीन पूरे वाक्य यहां तक कि पूरे अनुच्छेद का शामिल कर सकती है। लेकिन एक साथ एक बार में लिया गया स्रोत पाठ जितना बड़ा होगा, हासिल लक्ष्य पाठ के वास्तविक अनुवाद से उतना अधिक दूर होने का जोखिम होगा।
  • मशीनों के साथ उनके सॉफ्टवेयर आदि की परिचालन संबंधी समस्याएं भी होती हैं। समय-समय पर उनका उच्चीकरण किया जाना बेहद अहम होता है अन्यथा लाइसेंस प्रदाता की ओर से समय-समय पर किये जाने वाले अपग्रेडों के अपडेट न होने के कारण सॉफ्टवेयर के सही काम करने की संभावनाएं कम होती जाती हैं। क्योंकि लाइसेंस प्रदाता उपयोग करने वालों की प्रतिक्रिया के आधार पर समय-समय पर अपने सॉफ्टवेयर में कम या अधिक परिवर्तन करते रहते हैं।
  • कम्प्यूटर पर काम करने में डाटा संबंधी जोखिम भी इन समस्याओं में शामिल हैं, जैसे हार्ड ड्राइव का क्रैश कर जाना या मूल सॉफ्टवेयर का खराब हो जाना आदि।
  • जैसा कि मैने ऊपर बताया अनुवाद संबंधी अनेक टूल्स उपलब्ध हैं, ऐसे में पेशेवर अनुवाद की शुरुआत करने वाले को सही टूल के चुनाव को लेकर भ्रम हो सकता है।
  •  इन टूल्स के पूरी विशेषताओं के सही उपयोग के लिए प्रशिक्षण न लेने पर इनको सही तरीके से चलाने में समस्याएं आ सकती हैं, अतः इनका सही प्रशिक्षण भी आवश्यक हो जाता है।


उपरोक्त तथ्यों के प्रकाश में यह समझना और जानना बेहद जरूरी है कि अनुवाद को पेशे के तौर पर अपनाने के लिए यह जरूरी है कि आप आज के युग के साथ कदम से दम मिला कर चलें और सूचना प्रौद्योगिकी व इंटरनेट के इस युग में सभी उपलब्ध संसाधनों से न सिर्फ परिचित रहें बल्कि उनके अच्छे जानकार भी बनें।
अनुवाद के सैद्धांतिक पक्ष को जान कर व समझ कर आप अनुवाद के मूल के जानकार बनेंगे जो कि इसका कला पक्ष है लेकिन साथ ही कम्प्यूटर के इस युग में सभी पेशेवर लोगों को नवीनतम तकनीकों, मशीनों आदि की जानकारी आपको इस पेशे में बनाए रखने के लिए समान महत्व की साबित होगी।

सारे लाभों और सीमाओं के साथ यह समझना होगा कि मशीनी अनुवाद, मानव की उस जिद का नतीजा है जो उसे किसी भी क्रिया को सरल, सहज व सबके लिए सुलभ कराने से जुड़ी है। इसी जिद के कारण विभिन्न वैज्ञानिक अविष्कार होते हैं तथा मानव नई-नई तकनीकों के माध्यम से अपने आसपास के वातावरण को अपने लिए और सहज बनाता जाता है।
   
धन्यवाद!

बुधवार, 12 नवंबर 2014

साहित्य तथा साहित्येतर अनुवाद की समस्याएँ

भिन्न-भिन्न आधारों पर अनुवाद में भिन्न-भिन्न भेद किए जा सकते हैं लेकिन मूलतः अनुवाद के दो प्रकार होते हैं - साहित्यिक अनुवाद व साहित्येतर अनुवाद। इन दोनो प्रकार के अनुवादों में कुछ भूलभूत अंतर हैं - यदि भाव और शब्दपरक अनुवाद के अनुपात को देखा जाए तो साहित्य में भावपरक अनुवाद की मात्रा बहुत अधिक व शब्दपरक अनुवाद की मात्रा बहुत कम या शून्य होती है, साहित्येतर अनुवाद में ठीक इसका विपरीत होता है। साहित्यिक अनुवाद में मूल शब्दों की हानि होने की संभावना प्रबल होती है जबकि साहित्येतर विषयों में आमतौर पर ऐसा नहीं होता है।
दोनो ही तरह के अनुवाद भिन्न-भिन्न स्तरों पर अनुवादकों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की चुनौतियां और समस्याएं उत्पन्न करते हैं। इनमें से कुछ समस्याओं का विश्लेषण हम आगे करेंगे। सबसे पहले साहित्य अनुवाद की समस्याएं।
साहित्य अनुवाद व उससे जुड़ी समस्याएं -
स्रोत भाषा में लिखित साहित्य को लक्ष्य भाषा में अनुवाद करने को साहित्यिक अनुवाद कहते हैं। साहित्य की विधाओं में कविता, लघुकथा, कहानी, उपन्यास, अकांकी, नाटक, प्रहसन(हास्य), निबंध, आलोचना, रिपोर्ताज, डायरी लेखन, जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, गल्प (फिक्शन), विज्ञान कथा (साइंस फिक्शन), व्यंग्य, रेखाचित्र, पुस्तक समीक्षा या पर्यालोचन, साक्षात्कार शामिल हैं। साहित्यिक कृतियों का अनुवाद, सामान्य अनुवाद से उच्चतर माना जाता है। साहित्यिक अनुवादक कार्य के सभी रूपों जैसे भावनाओं, सांस्कृतिक बारीकियों, स्वभाव और अन्य सूक्ष्म तत्वों का अनुवाद करने में भी सक्षम होना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि साहित्यिक अनुवाद वास्तव में संभव नहीं हैं।
दो संस्कृतियों के बीच अनुवाद रूपी पुल के निर्माण में साहित्यिक अनुवाद की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। इसका सीधा सा कारण यह है कि किसी भौगोलिक क्षेत्र का साहित्य उस क्षेत्र की संस्कृति, कला और रीतियों का प्रतिनिधित्व करता है। कहा भी गया है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। बस यही वह चीज है जो साहित्य अनुवाद को बेहद उत्तरदायी और कठिन कर्म बना देती है। किसी भी एक साहित्यिक कृति का उसकी मूल भाषा से लक्ष्य भाषा में अनुवाद करते समय कितनी ही सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। ये सभी सावधानियां सांस्कृतिक भिन्नताओं के चलते समस्याओं का रूप ले लेती हैं। क्योंकि सांस्कृतिक भिन्नता को समाप्त करने के लिए भाषा को मूल रचना की भाषा में व्यक्त प्रतीकों, भावों और उन अनेक विशेषताओं को सटीक तरीके से लक्ष्य भाषा में उतारना होता है और साथ ही यह ध्यान रखना होता है कि लक्ष्य भाषा में उतरी कृति पढ़ने वाले को सहज और आत्मीय लगे।
हम सभी समझ सकते हैं कि यह आसान नहीं है, कारण बहुत सारे हैं, आइये उनकी विवेचना करते है:
काव्यानुवाद की समस्याएं -
काव्यानुवाद एक प्रकार का भावानुवाद है जिसे अधिकांशतः कवि ही करते हैं, क्योंकि इसके लिए कवि की संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। इसी कारण से तटस्थता बनाए रखना एक बड़ी समस्या हो जाती है। काव्य में शब्द के स्थान पर प्रतीकों का उपयोग बहुतायत में होता है। इस संकृति के प्रतीक को दूसरी संस्कृति के प्रतीक के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है कारण सांस्कृतिक भिन्नता है।

उदाहरण के लिए गंगा नदी पर लिखी किसी कविता का अंग्रेज़ी अनुवाद करते समय हमको इंग्लैंड की संस्कृति में गंगा जैसी पवित्र और मान्य नदी का प्रतीक खोजना होगा। अन्यथा गंगा के प्रतीक को अगर वैसे ही उपयोग किया गया तो लक्ष्य पाठक को भारत में गंगा की महत्ता को अलग से समझाना होगा।

इसी प्रकार से यह कतई आवश्यक नहीं है हिन्दी में चरण कमल बंदौ हरिराई में जिस तरह से चरण को कमल की कोमलता का प्रतीक माना गया है वैसा किसी अन्य यूरोपीय या भारतीय भाषाओं में भी हो।
इस सब के अलावा छंदबद्धता, बिम्ब विधान, कल्पना, मधुरता, लय, संरचना, अलंकारादि भी काव्यानुवाद को जटिल कर समस्याएं पैदा करते हैं। अनुवाद करते समय मूल पाठ के इन गुणों को लक्ष्य पाठ में उतारना भी समस्याओं का जनक होता है।
नाट्यानुवाद की समस्याएं -
मंचनीयता की पूर्व-शर्त से जुड़ी यह विधा कभी-कभी काव्यानुवाद जितनी ही जटिल हो जाती है क्योंकि नाट्य विधा का मंचन पक्ष इसे बहुआयामी बना देता है। नाटक का लक्ष्य पूरा हो इसके लिए लेखन से बाहर के कई वाह्य तत्व जैसे अभिनेता और निर्देशक भी इसमें शामिल होते हैं। मंचनीयता को पूरा करने के लिए नाटककार को रंगमंच की आवश्यकताओं को दिमाग में रखना पड़ता है। यह इसकी रचना प्रक्रिया को जटिल बना देता है।
नाटक का अनुवाद करने में उसकी सावादात्मक प्रकृति को बनए रखना एक समस्या है क्योंकि उसके पात्रों के समस्त गुणों को लक्ष्य भाषा के पात्रों में ठीक उसी तरह से दिखना चाहिए। समस्या यह है कि वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र संस्कृति की भिन्नता के प्रतीक होते हैं और उनको मूल रचना से लक्ष्य रचना में पुर्नजन्म लेना होता है। यह अनुवादक के लिए समस्याजनक हो जाता है क्योंकि उदाहरण के लिए भारतीय परिवेश में राजा हरिश्चन्द्र के डोम वाले चरित्र को दर्शाने के लिए अंग्रेज़ी में उसी प्रकार का कोई कार्य प्रतीक खोजना होगा।
नौकर व स्वामी के बीच के संवाद में यूरोपीय भाषाओं में नौकर द्वारा स्वामी के नाम/उपनाम के साथ मिस्टर पूर्वसर्ग लगाकर संवादों को प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन हिन्दी में ऐसा संभव नहीं है। बल्कि हिन्दी में ऐसा करना नाटक के प्रवाह को बाधित करेगा व पढ़ने वालों को यह अजीब सी अनूभूति देगा। 
मुहावरों तथा लोकोक्तियों का भी नाटकों में भरपूर उपयोग होता है और अनुवाद की समस्याओं पर चर्चा करते समय हम देख चुके हैं कि इनको लक्ष्य भाषा में पुनःनिर्मित करना चेढ़ी खीर साबित होता है। नाटक में संवादों के माध्यम से अभिनेता भावों को प्रकट करता है, अर्थात इसमें (संवादों में) शब्दों का चयन यह सोच कर किया जाता है कि अभिनेता संवाद प्रस्तुत करते समय किस शब्द को कैसे बोलेगा(गी) और उच्चारण की ध्वनि के भाव क्या होंगे। अब मूल भाषा के संवादों के इस भाव या विशेषता को अनुवादक द्वारा लक्ष्य भाषा में उतार पाना एक विकट समस्या होती है।
कथानुवाद की समस्याएं -  
कविता तथा नाटक की ही तरह कहानी, उपन्यास अथवा कथा साहित्य में सर्जना का स्तर किसी भी तरह से हल्का या कम नहीं होता है, इसीलिए इसका अनुवाद किसी भी तरह से सहज या सरल क्रिया नहीं होती है। कथा का अपना एक विशिष्ट प्रारूप होता है। इसमें साहित्य की अन्य विधाओं के गुण भी अंतर्निहित होते हैं। जिस तरह से नाटक के पात्र अपनी संस्कृति व पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कथा साहित्य में पूरे पाठ को एकल इकाई के रूप में प्रस्तुत व गर्हण करने से ही उसका अर्थ स्पष्ट होता है। अर्थात संपूर्ण पाठ एक श्रंखला जैसा होता है जो आपस में गुथी होती है और प्रत्येक कड़ी अगली या पिछली कड़ी को अर्थ प्रदान करती है। इस तालमेल को अनुवाद मे कायम रख पाना एक समस्या हो सकती है।
साहित्य की अन्य विधाओं के अनुवाद की तरह ही इस विधा में भी अनुवादक को कथ्य के विभाजन तथा शिल्पगत प्रयोग पर चिंतन मनन करना पड़ता है। अनुवादक कभी कुछ जोड़ता(ती) है तो कभी कुछ हटाता(ती) है। इस सारे कार्य और गतिविधि के साथ उसे मूल पाठ के भाव को बनाए रखना पड़ता है। स्रोत व लक्ष्य भाषा में सही प्रतीकों का चयन यहां भी उतना ही कठिन और समस्याप्रद होता है। किसी हिन्दी कहानी में हिन्दू विवाह के सात फेरों के साथ लिए जाने वाले सात वचनों को प्रतीक रूप में दूसरी भाषा में उतारना जहां पर इस तरह की संकल्पना भी समस्याजनक हो तो समझा जा सकता है कि प्रतीक खोजना कितनी दुष्कर समस्या हो सकती है। चरण स्पर्श का समतुल्य यूरोपीय भाषा में खोजना एक समस्या है।
अलंकार, मुहावरे और लोकोक्तियां यहां भी अनुवादक को उतनी ही समस्या देते हैं जितनी कि नाटक या अन्य विधाओं में। वह गऊ समान है जैसे मुहावरे के लिए दूसरे देशों में गाय के जैसे सीधे व सम्मानित पालतू प्रतीक को खोजना एक दुष्कर कार्य है। एक बात और, प्राचीन साहित्य का प्रतीक आज के समय में समतुल्य खोजना भी एक समस्या बन सकती है।     
सभी साहित्यिक विधाओं के अनुवाद में अनुवादकों को कमोबेश समान समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अनुवाद के दौरान दो भाषाओं का आपसी संचार, अनुवादक की संवेदना तथा स्रोत साहित्य की मूल संस्कृति की समझ, प्रतीकों, मुहावरों व लोकोक्तियों का भरपूर ज्ञान आदि ऐसे गुण हैं जो साहित्यिक अनुवादक के लिए अपरिहार्य हैं। साहित्यिक अनुवाद के लिए प्रतिभा, क्षमता और अभ्यास तीनों का अत्यधिक महत्व है।
साहित्येतर अनुवाद व उससे जुड़ी समस्याएं -
साहित्य में शामिल समस्त विधाओं के अतिरिक्त शेष विषयों को साहित्येतर विषय कहा जाता है इनमें मानविकी विषय, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, कार्यालयीन, वाणिज्यिक, वित्त, कानून आदि विषय शामिल हैं। साहित्यिक और साहित्येतर अनुवादों में मूल अंतर यह है कि साहित्येतर अनुवाद करते समय मूल व स्रोत भाषा के साथ-साथ संबद्ध विषय का भी पर्याप्त ज्ञान आवश्यक होता है। तकनीकि अनुवाद में मूल भाषा में निहित बहुअर्थी तथा संदिग्ध स्थितियों को समाप्त करके लक्ष्य को परिमार्जित करने का प्रयास शामिल रहता है। इन सभी विषयों में अनुवाद की मूल समस्याएं तो वे ही होंगी जो कि किसी साहित्यिक विषय में आती हैं जैसे कि भाषाओं की मूल संस्कृतियों, प्रतीकों, लोकोक्तियों, मुहावरों व विशिष्ट भावों का सटीक प्रस्तुतिकरण। इनमें से प्रत्येक विषय की अपनी विशिष्टताओँ के कारण हर एक विषय के अनुवाद में शामिल समस्याएं विषय विशेष से संबंधित भी हो सकती है लेकिन मोटे तौर पर समस्याएं समान ही रहती है।
मानविकी विषयों के अनुवाद की समस्याएं:
मानविकी वे शैक्षणिक विषय हैं जिनमें प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मुख्यतः अनुभवजन्य दृष्टिकोणों के विपरीत, मुख्य रूप से विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक या काल्पनिक विधियों का इस्तेमाल कर मानवीय स्थिति का अध्ययन किया जाता है। इन विषयों के अनुवाद में भाषाओं (लक्ष्य व स्रोत) की महारत के अतिरिक्त निम्नलिखित समस्याएं हमेशा सामने आती रहती हैं:
Ø  लक्ष्य भाषा में अनुदित सामग्री का उपयोग क्या होगा? यह जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह संदर्भित विषय के उस स्तर को निर्धारित करता है जिसका आधार मूल रूप से लक्ष्य पाठक की मानसिक अवस्था तथा विषय विशेष के ज्ञान का स्तर है जिसके लिए अनुवाद किया जा रहा है।
Ø  लक्ष्य भाषा का अपना स्तर क्या होगा? मान लीजिए कि किसी प्रशिक्षण सामग्री का अनुवाद किया जा है जो कि शिक्षक प्रशिक्षण से जुड़ी है। ऐसी स्थिति में विषय विशेष के ज्ञान के स्तर के साथ अनुवाद में उपयोग की जाने वाली भाषा का स्तर भी मायने रखता है क्योंकि - शिक्षक प्रशिक्षण शिशुशाला के शिक्षकों से लेकर विश्वविद्यालय के शिक्षकों तक, और तो और तकनीकि विषयों के शिक्षकों के भाषा ज्ञान का स्तर भिन्न-भिन्न होगा।
Ø  मानविकी विषयों में यह जरूरी हो जाता है कि यदि मूल भाषा में किसी तरह के भ्रम की संभावना हो तो लक्ष्य भाषा में उसे समाप्त किया जाए। इस कारण से मानविकी विषयों में अनुवाद करना समस्याप्रद हो जाता है। क्योंकि मूल भाषा में उपयोग किए गए कई शब्द या वाक्यांश यदि लक्ष्य भाषा में ठीक उसी प्रकार रख दिए जाएं तो पाठक के लिए भ्रम पैदा हो सकता है इसलिए उस भ्रम की स्थिति का न होना अच्छे मानविकी अनुवाद की विशेषता है।
Ø  मानविकी अनुवाद में एक और समस्या शब्दावली से जुड़ी हुई है क्योंकि हर एक विषय की अपनी एक मानक शब्दावली होती है। यदि अनुवादक मानक और प्रचिलित शब्दावली के सही उपयोग से परिचित नहीं होगा(गी) तो उसका अनुवाद, पाठक की समझ से परे होगा।
Ø  मानविकी विषयों का ज्ञान अत्यधिक महत्वपूर्ण है और कई विषय जैसे दर्शन शास्त्र में प्रतीकों आदि की उपस्थिति हो सकती है ऐसे में मानविकी विषय भी साहित्य के विषयों जैसा व्यवहार कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में ऐसे मानविकी विषय से संबंधित अनुवाद में वे सारी समस्याए उत्पन्न हो सकती हैं जो कि साहित्यिक अनुवाद में होती हैं।
तकनीकि, प्रौद्योगिकी एवं इंजीनियरिंग विषयों के अनुवाद की समस्याएं:
तकनीकि, प्रौद्योगिकी एवं इंजीनियरिंग विषयों के अनुवाद में इन सभी विषयों का पर्याप्त ज्ञान और समझ सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इन सभी विषयों से संबंधित शब्दावली  काफी जटिल हो जाती है। इन विषयों के अनुवाद में अनुवादकों की कुछ आम समस्याएं निम्नलिखित हैं:
Ø  मानक तकनीकि शब्दावली का सीमित होना। हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के उपरोक्त विषयों के अनुवादकों की सबसे बड़ी समस्या मानक शब्दावली का सीमित या अनुपलब्ध होना है। ऐसी स्थिति में बेहद जटिल तकनीकि शब्दों के मामले में लिप्यांतरण (Transliteration) से काम चलाया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि पाठक का तकनीकि ज्ञान विशेषज्ञ स्तर का न हो तो अनुवाद अपना मूल्य खो देता है।
Ø  तकनीकी अनुवाद के क्षेत्र में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अधिकांश अनुवादक कई-कई विषयों पर काम करते हैं लेकिन उस सभी विषयों पर उनकी विशेषज्ञता संभव नहीं होती है, ऐसी स्थिति में औसत गुणवत्ता वाले अनुवाद का जोखिम बना रहता है।
Ø  यदि अनुवादक को उस लक्ष्य की सटीक जानकारी न हो तो अनुवाद का मूल अभिप्राय पूरा नहीं होता है- जो कि संप्रेषण है। मान लीजिए कि चिकित्सा के क्षेत्र में किसी आम बीमारी जैसे - टीबी से संबंधित कोई ऐसा पाठ अनुवाद किया जाए जो कि आम जनता के बीच बीमारी की जानकारी व संदनशीलता बढ़ाने के लिए हो और अनुवादक ‘Tuberculosis’ शीर्षक का अनुवाद राजयक्ष्मा कर दे तो ऐसे में इस सूचना या जानकारी वाले पर्चे को आमजन द्वारा समझ पाना असंभव हो जाएगा और अनुवाद अपनी उपादेयता खो बैठेगा।
कार्यालयीन विषयों के अनुवाद की समस्याएं:
भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए यह आवश्यक हो जाता कि सरकारी कामकाज की एक देशव्यापी भाषा हो, जो सभी को स्वीकार्य हो। 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया गया। इसके पश्चात यह आवश्यक हो गया कि हिन्दी भाषा का प्रचार व प्रसाद अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में सुनिश्चित किया जाए। इसमे आने वाली समस्याओं के क्रम में द्विभाषा फार्मूला अपनाया गया। केन्द्र सरकार ने यह प्रयास किया कि उसके संचार व कार्य संबंधी व्यवहारों में राजभाषा के रूप में हिन्दी का उपयोग किया जाए तथा हिन्दी भाषी क्षेत्रों के अलावा जो प्रदेश है वहां पर यथासंभव वहां की भाषा में संवाद भी जारी रखे जाएं। रेलवे तथा राष्ट्रीयकृत बैंक व्यवस्था इसका एक सटीक उदाहरण है। इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनुवाद एक मुख्य हथियार साबित हुआ है।
Ø  इस क्षेत्र में भी समस्या कमोबेश वैसी हैं जैसी कि तकनीकि विषयों के क्षेत्र अनुवाद से संबंधित है। कार्यालय विशेष की शब्दावली की अनुपलब्धता, उसकी दुरूहता, व्यावहारिकता तथा अनुवाद की गुणवत्ता।
वाणिज्यिक विषयों के अनुवाद की समस्याएं:
आज भूमंडलीकरण के दौर में व्यापार भौगोलिक सीमाओं को लांघ गया है बहुराष्ट्रीय आकार की कंपनियों के लिए यह आवश्यक हो गया है कि उनके उत्पाद और उनकी जानकारियां सभी उपभोक्ताओं को उनकी अपनी भाषाओं में उपलब्ध हों। इसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि अनुवाद की सहायता ली जाए। बहुराष्ट्रीय प्रकृति के व्यापार में नियंत्रण के लिए कंपनियों को भिन्न-भिन्न देशों में स्थित अपने परिचालनों उस देश विशेष का भाषा में संवाद करना होता हैं यहां पर अनुवाद उपयोगी होता है।
Ø  वाणिज्य, वित्त एवं बैंकिंग क्षेत्रों में अनुवाद के लिए अनुवादकों को भी क्षेत्र विशेष का ज्ञान होना परम आवश्यक है। वाणिज्यिक पाठ - साहित्यिक, अर्ध-तकनीकी तथा गैर-तकनीकि तीनों तरह का हो सकता है। इनमें शाब्दिक अनुवाद की अपेक्षा अधिक रहती है तथा सभ्दावली चयन एक समस्या हमेशा रहती है।  
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि अनुवाद चाहे साहित्यिक हो या साहित्येतर, मूल इन दोनो प्रकार के अनुवादों में कुछ भूलभूत अंतर हैं - यदि भाव और शब्दपरक अनुवाद के अनुपात को देखा जाए तो साहित्य में भावपरक अनुवाद की मात्रा बहुत अधिक व शब्दपरक अनुवाद की मात्रा बहुत कम या शून्य होती है, साहित्येतर अनुवाद में ठीक इसका विपरीत होता है। साहित्यिक अनुवाद में मूल शब्दों की हानि होने की संभावना प्रबल होती है जबकि साहित्येतर विषयों में आमतौर पर ऐसा नहीं होता है।
शबदावली ज्ञान, लक्ष्य पाठक के मानसिक स्तर की जानकारी तथा विषय विशेष का अच्छा ज्ञान साहित्येतर अनुवाद के लिए परम आवश्यक है।


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रविवार, 12 मई 2013

अनुवादक के पेशे की शुरुआत....


अनुवादक के पेशे की शुरुआत करने के लिये कुछ सुनहरे सुझाव...


जब मैने इस श्रृंखला का पहला लेख लिखा (जिसे पसंद भी किया गया), तो अगले लेख के लिये मुझे थोड़ी माथा-पच्ची करनी पड़ी। कितनी ही बार घुटनों को खुजलाने के बाद एक लेख तैयार किया.... अनुवाद एजेंसी से संपर्क करना... लेकिन उसको लिखने के बाद मुझे बार-बार ऐसा लग रहा था कि कुछ ऐसा है जो बीच में छूट रहा है। इसी कारण उसको ब्लॉग पर चस्पा करने के पहले मैने सोचा कि पहले उस मिसिंग की तलाश की जाए...कई थानों के चक्कर लगाए, रिपोर्ट लिखायी लेकिन नतीजा सिफर...फिर मैने अपने निजी संसाधनों जैसे दिमाग़ आदि का प्रयोग किया तो अचानक मेरी ट्यूब लाइट जल पड़ी और...यह विषय मिल गया तो आप सब के सामने पेश है.... अनुवादक के पेशे की शुरुआत करने के लिये कुछ सुनहरे सुझाव पढ़िये और बताइये कि कितना उपयोगी है।

किसी अन्य पेशे की तरह, अनुवादक बनने के लिये अभ्यास, अनुभव और उपयुक्त प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। अगर आप अनुवादकों से यह पूछेंगे(गी) कि वे इस पेशे कैसे आये तो अलग-अलग कहानियाँ सुनने को मिलेंगी, यानी जितने मुँह उतनी बातें। आप पूछेंगे(गी) ऐसा क्यों तो ऐसा इसलिये, क्योंकि इसको करने का कोई एक मानक तरीका नहीं है, हाँ कुछ ऐसे चरण हैं जो आपको सही दिशा की ओर ले जायेंगे तो ऐसे कुछ चरणों के उदाहरणों पर नज़र डालिये:

सबसे पहले त्रुटि-हीन अनुवाद आत्म-परिचय लिखिये:

चूंकि आप इस बात से भली भाँति परिचित है कि आपका आत्म-परिचय त्रुटि-हीन होना चाहिये इसलिये मैं आपको यह कह कर पकाउंगा नहीं कि आपका आत्म परिचय त्रुटि- हीन होना चाहिये। मैं यह अवश्य कहूँगा कि अनुवादक का आत्म-परिचय किसी भी प्रकार की भाषाई त्रुटि से पूर्णतः मुक्त होना चाहिये साथ ही यह आत्म परिचय उस तरह का नहीं होना चाहिये जैसा कि आप दूसरे अन्य पेशों में नियुक्ति के लिये उपयोग करते(ती) रहे(ही)हैं।

यदि आप यह जानने की इच्छा रखते(ती) हैं कि आपने आत्म परिचय को कैसे बनायें तो आप http://www.proz.com और  http://www.translatorscafe.com जैसी साइट पर जा कर अनेकों सक्रिय अनुभवी अनुवादकों द्वारा उपयोग किये गये आत्म-परिचयों को देख कर बहुत कुछ सीख सकते(ती) हैं, यह बिल्कुल मुफ्त उपाय है। गूगल पर खोज करने से आपको बहुत सी ऐसी कड़ियाँ मिल जायेंगी जो आपको आपके आत्म- परिचय का निर्माण करने के लिये सहायक सेवायें प्रदान करने वालों तक आपको ले जायेंगी। इनमें से कुछ मुफ्त होंगे, कुछ भुगतान पर सेवा प्रदान करने वाले होंगे।

अपनी सेवाओं के विपणन पर ध्यान
केन्द्रित करिये:



अपने आत्म परिचय को भेजने के लिये इंटरनेट पर अनुवाद एजेंसियों की खोज करिये। बहुत से ऐसे समूह, ब्लॉग, वेबसाइट मिल जाएंगी जो इस मामले में आपकी भरपूर सहायता कर सकती हैं।
   अनुवाद एसोसिएशनो के मुफ्त ऑनलाइन डेटाबेस में पंजीकरण करिये, ऑनलाइन जॉब-खोज साइटें जैसे Linkedin आदि पर अपना पंजीकरण करिये अपना प्रोफाइल पोस्ट करिये।
     आप विभिन्न देशों के वाणिज्य दूतावासों, दूतावासों और वाणिज्य परिसंघों के साथ पंजीकरण कर सकते(ती) हैं।
       यदि नौकरी करना चाहें तो प्लेसमेंट सेवाओं के साथ पंजीकरण करिये।

थोड़ा लोकप्रिय बनने का प्रयास करें:

हलांकि तथ्य यह है कि अनुवाद को एक एकान्त पेशे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो कि अक्सर सही भी होता है। सफल अनुवादक न केवल एक से अधिक भाषाओं का(की) विशेषज्ञ होता(ती) है बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक सीमाओं से परे एक निपुण व्यक्तित्व होता(ती) है। अनुवादकों को भाषा से लगाव होता है, लेकिन साथ ही वे लोगों से लगाव रखते(ती) हैं और जानते(ती) हैं कि किस प्रकार से सहयोग करें दिशानिर्देश लें, काम उपलब्ध कराने वालों और नियोक्ताओं को कैसे खुश रखें। लिखते-लिखते कुछ ऐसा लग रहा है कि जैसे हम बहुमुखी होते हैं, हलांकि अभी ऊपर ही मैने कहा कि अनुवाद एक एकान्त पेशा है। लेकिन इसका अर्थ हिमालय की गोद में तप करना कतई नहीं है, बल्कि मैं तो कहूँगा कि ऐसा सोचना भी गलत है। ध्यान रहे कि अगर आप स्वतंत्र अनुवादक हैं तो पीर, भिश्ती, बावर्ची...सब कुछ बस आप ही हैं(या अगर कोई और भूमिका बचती हो तो उसे भी इसमें जोड़ लें)।

अपनी विशेषज्ञता से परे किसी भी काम को स्वीकार न करें:


विशेषज्ञता का अर्थ विषय विशेष की शब्दावली से मात्र परिचित होना नहीं है, अपनी  सीमाओं और विस्तार को जानिये। जो लोग अपनी ताकत और कमजोरियों को नहीं जानते हैं वे कतई आगे नहीं बढ़ सकते हैं। आपको अपने अवसरों और जोखिमों की पहचान करना भी आना चाहिये। यकीन जानिये अगर आप किसी विषय विशेष को लेकर असहज हैं या आपको लगता है कि आपका ज्ञान सीमित है तो काम को स्वीकार करने से इंकार करना (कारण बता कर), काम देने वाले के ऊपर, आपके बारे एक सकारात्मक प्रभाव ही छोड़ेगा (यह मेरा निजी अनुभव है)। घटिया काम करने से अच्छा काम न करना और अपनी साख को बनाये रखना। क्योंकि अगर अल्प-ज्ञान विषय पर काम करके आपने काम की ऐसी-तैसी कर दी है तो आपको आपकी विशेषज्ञता वाले काम भी मिलने बंद हो जाएंगे। आपका इंकार, सामने वाले को यह बताएगा कि आप अपने क्षेत्र और सीमाओं को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट हैं। अपने पेशे में(या किसी भी पेशे में) सबसे पहली ईमानदारी अपने आप से रखना जरूरी है। अपनी सीमाओं को पहचानने से दूसरों का आप पर विश्वास बढ़ना तय बात है।

अपने आँख और कान खुले रखिये:

एक बार किसी एजेंसी द्वारा काम के लिये चुने जाने के बाद, समझदारी यह है कि आप दूसरी अनुवाद एजेंसियां तलाशते(ती) रहें क्योंकि यह कतई ज़रूरी नहीं है कि किसी अनुवाद एजेंसी के पास आपकी विशेषज्ञता के काम हमेशा आते रहेंगे। एक ही एजेंसी के साथ काम करने से कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे आप एक पर ही निर्भर हो जाएंगे(गी), आपके काम में विविधता समाप्त हो जायेगी आदि। एजेंसी को आपसे सस्ता(ती) अनुवादक मिलते ही आपका बोलो-राम हो जाएगा। वहीं अगर आप अन्य दूसरी एजेंसियों से काम करते(ती) रहेंगे(गी) तो आपके काम में विविधता आयेगी और आपकी एक पर निर्भरता घट जायेगी। इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि आप समय-समय पर अपनी दरों में सुधार भी सहजता से कर पायेंगे(गी)। आखिर पैसा अगर खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं है। एक से अधिक एजिंयों के साथ काम करने से एक ऐसी स्थिति भी बन सकती है जब आपके पास तीनों से एक साथ छप्पर फाड़ टाइप काम आ जाये, लेकिन यहाँ पर आपकी वाकपटुता और संबंधों का प्रबंधन करने की क्षमता का परीक्षण होगा। आप सभी कामों को नहीं कर सकते(ती) हैं...तो किसी को तो न करना ही होगा। आपको देखना होगा कि इस स्थिति से कैसे निबटा जाये, अर्थात सांप भी मर जाये और लाठी भी सलामत रहे। यहाँ पर कई बार युधिष्ठिर का अर्धसत्य स्टाइल काम कर सकता है (यह सुझाव मात्र है)। कुछ भी हो, ऐसी स्थिति से निबटना आपको ही है और वो भी अपनी इश्टाइल से।   

थोड़ा व्यवस्थित हो जाइये:


अपने काम को पूरा करके देते समय, एजेंसी या क्लाइंट को विश्वास दिलाना मत भूलिये कि इस काम संबंधित किसी भी स्पष्टीकरण के लिए आप हमेशा उपलब्ध हैं। काम सौपिये और काम के पारिश्रमिक से संबंधित बिल को भेज दीजिये। आपके बिल में क्लाइंट के लिये जरूरी सारी जानकारी होनी चाहिये, जैसे काम के PO का उल्लेख (अगर है तो), काम मिलने और सुपुर्दगी की तारीख, काम (फाइल) का नाम, प्रोजेक्ट सौपने वाले मैनेजर (एजेंसी के मामले में) का नाम, आपकी दर तथा कुल देय, आपके बैंक व पेपाल, मनीबुकर आदि के संपूर्ण विवरण। कई बार एजेंसियाँ काम और बिलिंग के लिए अलग-अलग ई-मेल रखती हैं, उनका ध्यान रखिये।
यकीन जानिये अगर आप ऊपर दिये गये सुझावों पर अमल करेंगे(गी) तो आपको लाभ ही होगा। हलांकि हममें से अधिकांश यह सोचते हैं कि ये सारी बाते हम तो हमको पहले से पता है, तो मेरा अंतिम सवाल उन सबसे हैं (जो ये सब जानते हैं)...  “थोड़ा सोचिये और खुद को बताइये कि इनमें से कितनी बातों का ध्यान हम रखते है?” किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन आत्मचिंतन करने के परिणाम बेहतर ही होते हैं। नये अनुवादकों के लिये इन बातों की आदत डालना तुलनात्मक रूप से आसान होगा और इसका उनको लाभ भी मिलेगा, ऐसी आशा और शुभेच्छा के साथ.....अगले लेख तक विदा!

और अंत में, त्रुटियों के लिये क्षमा करें........